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राष्ट्र कवियत्री ःसुभद्रा कुमारी चौहान की रचनाएँ ःउन्मादिनी


पवित्र ईर्ष्या
[10  ]

मिश्रानी कुछ देर तक स्तंभित-सी खड़ी रही; उसकी समझ में न आया कि क्या करे । विमला को इस रूप में उसने कभी देखा न था; इसी समय विमला की दूसरी डाँट से मिश्रानी की चेतना जाग्रत हो उठी । विमला ने अपना क्रोध फिर उसी पर उतारा, बोली, जाती हो कि खड़ी ही रहोगी?

बेचारी मिश्रानी को कुछ कहने का साहस न हुआ; डरते-डरते थाली वहीं मेज पर धीरे से रखकर वह जाने लगी।
विमला ने पुकारा, यह थाली उठा लिए जाओ मिश्रानी ।

मिश्रानी ने चुपचाप थाली उठाई और चली गई। विमला की माँ से उसने विमला के कहे सारे वाक्य दुहरा दिए। विमला की माँ यह सब सुनकर घबरा उठीं। पुरानी प्रथा के अनुसार बेटी की देहली के भीतर पैर रखना अनुचित है, इसका उन्हें खयाल न रहा। उसी समय वह कार में बैठकर विमला के पास पहुँच गईं। इस समय तक विमला रो-धोकर कुछ शांत होकर बैठी थी। सोच रही थी कि नाहक ही माँ के घर की चीजें वापस भेजीं। मिश्रानी से अनावश्यक बातें कह के बुरा ही किया। वह आख़िर क्या समझे, समझ भी गई तो क्या कर सकती है? वह माँ से कहेगी और माँ को दुःख होगा। अगर बाबू को मालूम हुआ तो? अनन्तराम जी की वेदना के स्मरण मात्र से विमला फिर रो उठी।

इसी बीच उसकी माँ ने वहाँ प्रवेश किया। माँ को देखते ही उसका रहा-सहा धीरज जाता रहा। माँ से लिपटकर वह खूब रोई। माँ-बेटी दोनों बहुत देर तक बिना कुछ बोले-चाले रोती रहीं; अंत में कमला ने किसी प्रकार विमला को शांत किया। माँ के बहुत पूछने पर विमला ने माँ को सब-कुछ बतला दिया।

इस बात से कमला को कष्ट न हुआ हो, सो बात नहीं थी; परंतु विमला को वह किसी प्रकार शांत करना चाहती थीं, इसलिए अपनी मार्मिक वेदना को हृदय में ही छिपाकर वह शांत स्वर में विमला को समझाती हुई बोलीं, बेटी! विनोद की बातों का तुम्हें बुरा न मानना चाहिए। इतना तो समझा करो कि वे तुम्हें कितना अधिक प्यार करते हैं। तुम्हारे ऊपर यदि विनोद का इतना अधिक स्नेह न होता तो वे तुम्हारी इतनी नन्‍हीं-नन्‍हीं बातों को इतनी बारीकी से देखते भी तो नहीं।

माँ की बातों से विमला को कुछ सांत्वना मिली हो चाहे नहीं; पर वह कुछ बोली नहीं । बहुत रात तक विनोद की प्रतीक्षा करने पर भी जब विनोद न लौटे तो कमला विमला को समझा-बुझाकर अपने घर चली आई।

विनोद अखिलेश के घर चले गए थे; इसलिए उन्हें घर लौटने में कुछ देरी हो गई। जब विनोद अकेले ही अखिलेश के घर पहुँचे तो वे कुछ चकित-से हुए, परंतु विमला के विषय में स्वयं वह कुछ न पूछ सके; विनोद को ही यह विषय छेड़ना पड़ा। रात को बहुत-सी बातें तो विनोद के ही द्वारा उन्हें मालूम हो चुकी थीं, दूसरे दिन विमला की माँ से उन्हें और भी बहुत-सी बातें मालूम हुईं; अखिलेश कुछ विचलित-से हो उठे। उन्हें अपने ही ऊपर क्रोध आया। उन्होंने सोचा, मैं भी क्या व्यक्ति हूँ जिसके कारण एक सुखी दंपति का जीवन दुखी हुआ जा रहा है। उन्हें कोई प्रतिकार न सूझ पड़ा और अंत में वह एक निश्चय पर पहुँचे। इधर कुछ दिनों से वे यहीं कॉलेज में प्रोफेसर हो गए थे। उन्होंने एक पत्र कॉलेज के प्रिंसिपल को लिखा और दूसरा लिखा विनोद के लिए।

कॉलेज का पत्र उसी समय कॉलेज भेजकर, दूसरा पत्र नौकर को देकर समझा दिया कि शाम को वह विनोद को दे आवे। नौकर बाजार गया था; रास्ते में विनोद से उसकी भेंट हुई; सोचा कि शाम को फिर इतनी दूर आने का झगड़ा कौन रखे। ये मिल गए हैं तो पत्र यहीं दे दूँ। चिट्ठी निकाल विनोद को देकर वह आगे निकल गए। पत्र पढ़ते ही विनोद घबरा गए। रात से विमला की तबीयत ख़राब थी। वे डॉक्टर बुलाने आए थे, अब उन्हें डॉक्टर की याद न रही। वे सीधे अखिलेश के घर की तरफ दौड़े, अखिलेश घर पर न मिले, उन्हें देखने कॉलेज गए; किंतु वहाँ अखिलेश तो न मिले; हाँ, हर एक की जबान पर, बिना किसी कारण ही दिए हुए अखिलेश के इस्तीफे की चर्चा अवश्य सुनने को मिली। विनोद ने जाकर प्रिंसिपल से अखिलेश का इस्तीफा वापस लिया और उनसे कहा कि अखिलेश से मिलकर वह इस्तीफे के विषय में अंतिम सूचना देंगे। जब तक विनोद से उन्हें कोई सूचना न मिले तब तक वे इस्तीफे पर किसी प्रकार का निर्णय न करें। वहाँ से वे फिर अखिलेश के घर आए। दरवाजे पर ताँगा खड़ा था। जिस पर अखिलेश का एक बैग और बिस्तर रखा था। विनोद के पहुँचने से पहले ही अखिलेश आकर ताँगे पर बैठ गए। उसी समय पहुँचे विनोद; साइकिल वहीं फेंककर अखिलेश की बगल में जा बैठे और सजल आँखों से बोले-
“चलो कहाँ चलते हो अखिल! मैं भी तुम्हारे साथ चलता हूँ।'

अखिलेश की भी आंखें भर आईं, वे कुछ क्षण तक कुछ बोल न सके। अंत में, वे किसी प्रकार अपने को सँभालकर बोले, तुम पागल हो विनोद। तुम्हें मेरे साथ चलने की क्या जरूरत है।

-जरूरत? ठहरो तुम्हें अभी बतलाता हूँ। पर तुम यह समझ लो कि मैं तुम्हारा साथ स्वर्ग और नरक तक भी न छोड़ूँगा। यह देखो, तुम्हारा इस्तीफा है, कहते हुए विनोद ने जेब से अखिलेश का लिखा हुआ इस्तीफा निकालकर टुकड़े-टुकड़े करके फेक दिया और ताँगा अपने मकान की तरफ मुड़वा लिया।

नौकर अखिलेश का सामान विनोद के आदेशानुसार विनोद के कमरे में ही ले जाकर रख आया। विमला समझ न सकी कि विनोद का ऐसा कौन-सा आत्मीय आया है जो इन्हीं के कमरे में ठहराया जाएगा?

इसी समय सीढ़ियों पर विनोद ने आवाज दी, विन्नो! यह डॉक्टर आया है।

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